Three little words (HINDI ALSO )

THREE LITTLE WORDS 

There are three little words that are so hard to say -

Sorry ,

forgive , and 

obey .

But these three little words will change your whole day -

Sorry ,

forgive ,and obey 



So if you want to be happy then this is God's way -

tell Him,

"I'am sorry ,please forgive me ,and I'll obey 

Don't forget to say these three little words to your parents and others ,too 

"I'm sorry ,forgive me ,"Are hard words to say .

But when said from the heart

They bring great joy your way . 

अपनी गलती मान लेना एक गुण  हैं। इसके कई फायदे हैं :

(१ )व्यक्ति अपनी किये पर पछताता है लेकिन खेद व्यक्त कर देने से हीन भावना से मुक्त हो जाता है।  मन को चैन औ सुकून मिलता है। क्षमा मांगना (मुआफी )मांगना सभी धर्मों में मान्य है। माफ़ी मांगने से आदमी छोटा नहीं हो जाता है अपनी ही नज़रों में गिरने से बच जाता है।  बड़ा हो जाता है। 

बड़ों का भी  फ़र्ज़ है बच्चा अपनी गलती तस्दीक करे मान ले तो उसे क्षमा कर दें। ज़लील न करें :

क्षमा बड़ेन  को चाहिए ,छोटन को उत्पात। 
का रहीम हरि को घट्यो ,जो भृगु मारी लात।| 


अर्थात उद्दंडता करने वाले हमेशा छोटे कहे जाते हैं और क्षमा करने वाले ही बड़े बनते हैं।  ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु की सहिष्णुता की परीक्षा लेने के लिए उनके वक्ष पर ज़ोर से लात मारी। मगर क्षमावान भगवान ने नम्रतापूर्वक उनसे ही पूछा, "अरे! आपके पैर में चोट तो नहीं लगी? क्योंकि मेरा वक्षस्थल कठोर है और आपके चरण बहुत कोमल हैं।" भृगु महाराज ने क्रोध करके स्वयं को छोटा प्रमाणित कर दिया जबकि विष्णु भगवान क्षमा करके और भी बड़े हो गए। 


अधिकतर प्रहार करने के लिए लात की भी आवश्यकता नहीं पड़ती, हमारी जिह्वा ही पर्याप्त होती है। 


यह सोचकर बड़ा आश्चर्य होता है कि मानव शरीर में जो यह जिह्वा नाम की इन्द्रिय है, वह बड़ी करामात दिखाती है।  जहां मीठा बोल कर सबको अपना बना लेती है, वहीं कड़वा बोल कर  शत्रुओं की फ़ौज खड़ी कर लेती है।  संत कवि रहीमदास ने कहा है-
रहिमन जिह्वा बावरी, कह गयी सरग-पताल।
आप कह भीतर गयी, जूती खात कपाल।।
अर्थात बावरी जिह्वा अंट-शंट बकवास करके, अपशब्द कह कर  मुँह के भीतर चली जाती है।  मगर बदले में सिर को मार खानी पड़ती है।


कागा काको धन हरे ,कोयल काको   देत ,

मीठे बोल सुनाय के सबका मन हर लेत। 

  इस जिह्वा के कारण संसार में बड़े-बड़े युद्ध हो गए हैं।  द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कहा और महाभारत के युद्ध की भूमिका तैयार हो गयी थी। 
इंसान से कभी न कभी गलती हो ही जाती है।  मगर गलती को समय रहते सुधार लेना ही समझदारी होती है।  जिस तरह तरकश से निकला हुआ तीर वापस नहीं आता, वैसे ही मुँह से निकले बोल वापस नहीं हो सकते। शरीर का घाव तो समय पाकर भर भी जाता है, पर मन के घाव का भरना सहज नहीं होता।  फिर क्या किया जाए? मनीषियों ने इसका बड़ा ही सहज और सुन्दर उपाय सुझाया है- क्षमा माँग लेना या क्षमा कर देना।  ये दोनों ही वृत्तियाँ हमारा मन हल्का करने वाली उदार वृत्तियाँ है। वैर-भाव को मिटाकर शान्ति प्रदान करने वाली। 
"क्षमा बड़न को चाहिये"- यह केवल एक सोच, एक विचार ही  नहीं, अपितु यह एक अभ्यास जनित प्रक्रिया है।  जीवन के हर मोड़ पर, हर सम्बन्ध में क्षमा का महत्त्व है, अब चाहे वह बचपन की ही बात हो। उदाहरणार्थ, एक छोटा बालक दिवाली की छुट्टी मनाने अपने मामा के घर गया।  वहाँ पटाखे जलाते समय उससे अलगनी पर सूख रहे कपड़ों में आग लग गयी। वह डर गया।  मगर मामा बोले, "कोई बात नहीं, गलती तो हमारी ही थी जो कपड़े उतारकर भीतर नहीं रखे।  इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं, डरो मत।" उस बालक के मन में आज भी अपने मामा का स्थान बहुत ऊँचा होगा। मामा ने उसके कोमल मन को यह सिखा दिया कि भावनाओं के सामने वस्तुओं का कोई मोल नहीं। अवश्य ही वह बालक बड़ा हो कर अन्य बच्चों के साथ ऐसी ही सहिष्णुता का व्यवहार करता होगा। 
इसी  प्रकार चाहे वह किशोरावस्था में की गयी भूल हो, यदि माता-पिता प्यार से बेटे-बेटी को समझा कर उसका मार्गदर्शन करेंगे तो वह उनकी क्षमा का अनुचित लाभ कदापि नहीं उठाएगा। अन्यथा अनर्थ भी हो सकता है। यह बात एक सच्ची घटना द्वारा समझाना चाहती हूँ/चाहता हूँ ।


 लखनऊ में हमारे एक पड़ोसी का चौदह-पंद्रह वर्षीय लड़का घर में छिप कर सिगरेट पी रहा था। जाड़े की ऋतु थी। रजाई-गद्दों में आग लग गयी। इस पर उसके पिता ने क्रोध में आकर उसकी खूब पिटाई की और नाई के पास ले जा कर उसके बाल ऐसे कटवा दिए कि कहीं बाल तो कहीं सिर मुँडा हुआ। सिर चितकबरा लगने लगा। जो देखता वही हँसता। शर्म के मारे लड़का दिन भर घर से बाहर नहीं निकलता। आठ दिन बाद पिता के मन में क्षमा उपजी और स्वयं ही उसे टोपी ला कर दी। मगर इस घटना ने उस लड़के को विद्रोही बना दिया। कुछ दिन बाद ही उसने अपनी माँ के सोने के कंगन चुराकर बेच दिए। उसके पग फिसलते ही गए। यदि पिता ने पहले दिन ही उसे थोड़ा धमका कर माफ़ कर दिया होता, तो शायद वह लड़का न बिगड़ता। अतः दंड देने से पहले दस बार सोचना चाहिए और क्षमा करने में देर नहीं करनी चाहिए। 
इसी तरह वैवाहिक जीवन में भी जो क्षमा करता है, वही उदार और बड़े दिल वाला बनता है। जीवन में अनेक बार हमारे अहं को चोट लगती है तो क्रोध उपजना स्वाभाविक हो जाता है। अब यदि प्यार से क्षमा माँग ली जाये तो बात वहीँ ख़त्म हो जाती है। वरना टकराव, बिखराव में बदल सकता है। 'क्षमा बड़न को चाहिये' वाली कहावत दाम्पत्य जीवन में सबसे अधिक काम आती है। 
दाम्पत्य जीवन की बात करे तो समय बड़ी तेज़ी से बदल रहा है। कुछ समय पहले पति-पत्नी के कार्य क्षेत्र विभाजित होते थे। पति का निर्णय पत्नी के लिए आदेश होता था। अनेक बार तो न की गयी त्रुटियों पर भी पत्नी क्षमा माँग लेती थी। और पति भी अपने अहं की तुष्टि पाकर क्षमाशील बन जाता था। मगर आज! आज कामकाजी पत्नियाँ हर क्षेत्र में पति के समकक्ष खड़ी हैं। वहाँ क्षमा माँगने मैं कोई भी पहल नहीं करना चाहता। नतीजा टूटते परिवारों के रूप में आज हमारे सामने है। क्षमा करके अपना बड़प्पन तो तब प्रगट होगा जब क्षमा माँग कर कोई झुक रहा हो। यहां एक बात कहना अप्रासंगिक न होगा कि दाम्पत्य जीवन में दूसरे के गुण देखना, उनकी प्रशंसा करना और साथ ही अपनी भी कमियों का अहसास करना अति आवश्यक होता है। तभी हमारे जीवन में क्षमा का अवतरण होता है।
इसी प्रकार मित्रों के बीच यह भावना ज़रूरी है। कभी-कभी क्या होता है कि हमसे कोई मित्र नाराज़ हो जाता है। कुछ समय तक तो हम परवाह ही नहीं करते।  फिर अन्य मित्र बीच में पड़ कर समझौता करवाने का प्रयास करते हैं और क्षमा माँग लेने की प्रेरणा देते हैं। बाध्य करते हैं। तब हम अपनी शर्तों पर ही क्षमा माँगने को तैयार होते हैं।  यह क्षमा का औपचारिक रूप है जिसमें हम गलती पर गलती किये जाते हैं और दिखावे के लिए  क्षमा माँग लेते हैं। सुधरने का नाम नहीं लेते। कई बार हम क्षमा माँग कर भी अकड़े रहते हैं। माफ़ करके भी माफ़ नहीं करते। कभी-कभी तो हम क्षमा भी अकड़ कर माँगते हैं। कह देते हैं कि गलती की तो क्या हुआ, क्षमा भी तो माँग ली। जैसे अहसान कर दिया हो। ऐसी औपचारिक क्षमा से क्या लाभ जब मन में क्षमाभाव आता ही न हो। हम यह क्यों नहीं समझ पाते कि क्षमा माँग कर या देकर हम किसी पर अहसान नहीं कर रहे। वरन अपने ही मन की शान्ति का उपाय करते हैं। मन की मलिनता को धोने का माध्यम है क्षमा। 
भगवान महावीर ने क्षमा माँगने से अधिक क्षमा करने को महान बताया है। वे कहते हैं, "मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ। सब जीव मुझे क्षमा करें। सब जीवों से मेरा मैत्रीभाव है। किसी से वैर-भाव नहीं। "
रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में भगवान श्री राम लंका में प्रवेश करने के लिए समुद्र से मार्ग माँग रहे थे। तीन दिन बीत गए विनती करते हुए किन्तु समुद्र पर असर नहीं हुआ। क्रोध में आ कर जैसे ही श्री राम ने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष पर संधान किया, समुद्र भयभीत होकर उनके चरणों में गिर पड़ा।


सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे।
क्षमहु नाथ सब अवगुन मेरे।।



श्री राम ने तुरंत ही उसे क्षमा प्रदान कर दी। इसी प्रकार शिशुपाल के सौ अपराधों को श्री कृष्ण ने क्षमा कर दिया था। ऐसी क्षमा शक्तिशालियों का आभूषण कहलाती है।  कहते हैं -
क्षमा बलं अशक्तानां, शक्तानां भूषणं क्षमा।
क्षमा वशीकृते लोके, क्षमया किम न साधयति।।  


अर्थात, क्षमा कमज़ोरों की ताकत और शक्तिशालियों का आभूषण है। सारा संसार क्षमा से वश में किया जा सकता है। इससे सभी कार्य सिद्ध हो सकते हैं। 
 एक मुनि महाराज ने तो यहाँ तक कहा है,


पुष्प कोटि समं स्तोत्रं, स्तोत्र कोटि समं जपः।जप कोटि समं ध्यानं, ध्यान कोटि समं क्षमा।।     


एक करोड़ पुष्पों के समान एक स्तोत्र, एक करोड़ स्तोत्रों के समान एक जप, एक करोड़ जपों के बराबर एक ध्यान और एक करोड़ ध्यान के बराबर एक बार की क्षमा है। और जो व्यक्ति क्षमाशील बन जाए, उसकी महानता की तो बात ही क्या। 
महात्मा गांधी कहा करते थे कि यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो तुम दूसरा गाल भी आगे कर दो। क्षमा का यह एक बहुत ही अनोखा प्रयोग था गांधी जी का। कभी आज़मा कर देखिए, सामने वाला अवश्य ही शर्मिंदा हो जायेगा। बिना बदले के क्रोध वैसे ही शांत हो जाता है जैसे बिना ईंधन के अग्नि।  


क्षमा शस्त्रं करे यस्य, दुर्जनः किम करिष्यति। 
अतृणे पतितो वह्नि स्वयं एव उपशाम्यति।।



क्षमा का शस्त्र जिसके पास है, उसका दुष्ट मनुष्य कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। बिना तिनकों वाली पृथ्वी पर गिरकर अग्नि खुद ही शांत हो जाती है। 
अनुभव के आधार पर कह  सकते हैं कि किसी के प्रति  कटुता रख कर हम अपना ही मन मैला करते हैं और मन की शान्ति से हाथ धो बैठते हैं। दिल से क्षमा करके स्वयं को ही सुखी बनाते हैं। अब बताइये, क्षमा से अधिक लाभ हमें ही तो हुआ न? और बड़ा बनना कौन न चाहेगा? इसी लिए कहते हैं, क्षमा बड़न को चाहिए।


अंत में इस पर भी विचार करें :

 सबद  सम्हारे बोलिए ,सबद  के हाथ न पाँव ,

एक सबद  औषध करे एक शब्द करे घाव। 

विशेष :सुबह उठकर प्रार्थना  करें ,प्रार्थी बन के निवेदन करें :

मैं उन सभी लोगों से क्षमा  माँगता हूँ जिनका मैंने कभी और अतीत  में मेरे पुरखों ने जाने अनजाने में दिल दुखाया है। 

उन सभी लोगों को मैं मुआफ करता हूँ जिन्होनें मेरा या अतीत में कभी मेरे पुरखों का भी दिल दुखाया है। 

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१ )God's Little Devotional Book for Kids 

                     By Dr V.GILBERT BEERS --------
                      
                     Honor Books ,Tulsa Oklahoma 
(2 )https://www.anhadkriti.com/sushma-satish-agarwal-lekh-kshama-badan-ko-chahiye

क्षमा बड़न को चाहिये

सुषमा सतीश अग्रवाल

रचनाकार परिचय

ईमेल पता: adhyapika@gmail.com
जन्म तिथि: 1954-11-04
जन्मस्थान: lucknow
शिक्षा: BA  BEd

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